शारदीय नवरात्रि
पालकी पर सवार होकर आएगी मां जगदंबा
और विदाई मुर्गे पर होगी
मां दुर्गा का प्राकट्य दुर्लभ शुभ संयोग में होने से धर्म ध्वज के साथ व्यापार व्यवसाय में होगी तीन गुना वृद्धि
उज्जैन।
3 – अक्टूबर- गुरुवार
से शारदीय नवरात्र प्रारंभ हो रही हैं । इस बार
मां दुर्गा भवानी का प्राकट्य
दुर्लभ शुभ संयोग मे होने से
धर्म ध्वज की तीन गुना समृद्धि का योग बन रहा है।
इस दिन हस्त नक्षत्र, ऐंद्र योग, और जयद योग बना रहेगा,
इस दिन दुर्लभ इंद्र योग का निर्माण हो रहा है. इस योग में पूजा करने से व्रती को सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होगी. ।
शारदीय नवरात्रि की खास जानकारी
वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु का आगमन होता है ।
शरद ऋतु मे मौसम सुहावना रहता हे ।
( माता दुर्गा का वाहन )
नवरात्रि की शुरुआत गुरुवार या शुक्रवार को होने पर मां दुर्गा डोली पर सवार होकर आ
( जब नवरात्र की शुरुआत शुक्रवार या गुरुवार को होती हैतो इसे शुभ नहीं माना जाता है। इससे देश-दुनिया को आंशिक महामारी या फिर प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ता है। वहीं माता रानी का चरणायुध प्रस्थान करने से जीवन में दुख और अशांति बढ़ सकती है
इस साल मां दुर्गा भवानी पालकी पर सवार होकर आएंगी और विदाई चरणायुध (मुर्गे) पर होंगी. )
देवी पुराण के मुताबिक, पालकी पर सवार होकर आना शुभ माना जाता है.
शारदीय नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा भवानी की पूजा-उपासना करने से जीवन में खुशियां आती हैं और दुख-संताप दूर होते हैं.
शारदीय नवरात्रि के दौरान 5 अक्टूबर के बीच सर्वार्थ सिद्धि और रवि योग बना रहेगा. इसके बाद 11 और 12 अक्टूबर को भी ये दोनों योग बन रहे हैं.
धार्मिक मान्यता है कि इन शुभ योग में पूजा-अर्चना और खरीदारी करना फलदायी होता है.
शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ पितृ पक्ष के समापन के बाद ही शुरू होता है। सर्व पितृ अमावस्या यानि अश्विन अमावस्या के खत्म होने के अगले दिन से शारदीय नवरात्रि कलश स्थापना के
नवरात्रि में नौ दिनों तक अखंड ज्योत जलाई जाती है.
साथ शुरू होती है। अश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि को शारदीय नवरात्रि का पहला दिन होता है। उस दिन सुबह में स्नान आदि से निवृत होने के बाद कलश स्थापना करते हैं। मां दुर्गा का आह्वान होता है। फिर व्रत व पूजन आदि करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि के दौरान विधि- विधान से मां दुर्गा की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
( शारदीय नवरात्रि पर घटस्थापना की विधि )
शास्त्र के अनुसार जिस जगह चौकी घट स्थापना करनी है। सबसे पहले उस स्थान को गाय के गोबर से लीपें । बड़े मिट्टी के दीपक में जौ बोएं, इस दीपक को पूजा के स्थान पर स्थापित कर दें। अब अपनी इच्छा के अनुसार मिट्टी, तांबे, चांदी या सोने का कलश लें। पानी भरकर इसमें पूजा की सुपारी सिक्का, हल्दी की गांठ डाल दें। अब इस कलश के ऊपर पान या अशोक के पत्ते के साथ नारियल रख दें। यह कलश पूजन स्थान पर स्थापित कर दें। कलश के नीचे थोड़े गेहूं भी रखें। अबीर, कुमकुम, फूल चावल से कलश की पूजा करें। सबसे पहले गणपति की
पूजा, फिर माता का आव्हान और समस्त ग्रहों का पूजा करें।
विभिन्न पंचांंग के अनुसार ज्योतिर्विद पं अजय कृष्ण शंकर व्यास जानकारी दी इस बार चतुर्थी तिथि की वृद्धि तथा नवमी तिथि का क्षय होने पर भी पूरा पक्ष 15 और नवरात्र नौ दिनों की होगी। भक्तजन नौ दिन पाठ करेंगे। परंतु, 10 अक्टूबर को आतर है। 11 अक्टूबर को महाअष्टमी और नवमी की पूजा होगी। शास्त्रों के अनुसार सप्तमी और अष्टमी मिला रहने पर महाअष्टमी का व्रत निषेध माना गया है। 10 को सप्तमी और अष्टमी दोनों है। इसलिए श्रद्धालु अष्टमी की पूजा न कर सिर्फ महागौरी की पूजा करेंगे मंदिर मे पंरपरा रात्रिकालीन के अनुसारकर सकते है ।
घट स्थापना कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त प्रात: 06:24 से 07:24 कन्या लग्न चोघडिया शुभ
दोपहर 11:55 से 12:41 लाभ का चोघडिया
( नवरात्रि के नौ दिन मां भवानी के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।
पहला दिन) – 3 अक्टूबर- मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है
(दूसरा दिन) -4 अक्टूबर –
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है
(तीसरा दिन) -5 अक्टूबर –
मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती
(चौथा दिन)- 6 एवं 7 अक्टूबर –
मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है
(पांचवा दिन)-8 अक्टूबर- मां स्कंदमाता की पूजा
(छठां दिन)- 9 अक्टूबर-
मां कात्यायनी की पूजा
सातवां दिन) -10 अक्टूबर- मां कालरात्रि की पूजा
(आठवां दिन) -11 अक्टूबर- मां महागौरी पूजा
(नौंवा दिन) -11 अक्टूबर- मां सिद्धिदात्री की पूजा
नवमी हवन, विजयादशमी- 12 अक्टूबर 2024, शनिवार
अष्टमी एवं नवमी दोनों की पूजन 11 अक्टूबर को की जाएगी अष्टमी की पूजन ब्रह्म महुरत में नवमी की प्रात 7 बजे बाद की जायेगी ।
श्री मांतगी ज्योतिष ज्योतिर्विद पं अजय कृष्ण शंकर व्यास मोबाइल 8871304861
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। हिमालय को संकित भाषा में शैल कहा जाता है ऐसे में हिमालय राज की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। मां शैलपुत्री को वृषोरूढ़ा, सती, हेमवती, उमा के नाम से भी जाना जाता है। मां शैलपुत्री की कृपा से व्यक्ति में तपस्या का गुण उत्पन्न होता है।
मां शैलपुत्री के स्वरूप की बता करें तो इनका वरण सफेद है। माता ने श्वेत रंग के वस्त्र ही धारण किये हुए हैं। माता की सवारी वृषभ यानी कि बैल है। मां शैलपुत्री ने दाएं हठ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल (कमल के उपाय) धारण किया हुआ है। मां का यह रूप सौम्यता, करुणा, स्नेह और धैर्य को दर्शाता है।
शैलपुत्री माता पूजन विधि
नवरात्रि के पहले दिन प्रातः स्नान कर निवृत्त हो जाएं।
फिर मां का ध्यान करते हुए कलश स्थापना करें।
कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री के चित्र को स्थापित करें।
मां शैलपुत्री को कुमकुम और अक्षत लगाएं।
मां शैलपुत्री का ध्यान करें और उनके मंत्रों का जाप करें।
मां शैलपुत्री को सफेद रंग के पुष्प अर्पित करें।
मां शैलपुत्री की आरती उतारें और भोग लगाएं।
मंत्र
ऊँ देवी शैलपुत्र्यै नमः ।।
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।
माँ शैलपुत्री मूलाधार चक्र की देवी मानी जाती है
नवरात्रि के दूसरे दिन पूजित ब्रह्मचारिणी आंतरिक जागरण का प्रतिनिधित्व करती हैं। मां सृष्टि में ऊर्जा के प्रवाह, कार्यकुशलता और आंतरिक शक्ति में विस्तार की जननी हैं। ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता हैं। इनका स्वरूप श्वेत वस्त्र में लिपटी हुई कन्या के रूप में है, जिनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे में कमंडल है। यह अक्षयमाला और कमंडल धारिणी ब्रह्मचारिणी नामक दुर्गा शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र आदि से संयुक्त हैं। भक्तों को यह अपनी सर्वज्ञ संपन्न विद्या देकर विजयी बनाती हैं। ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है। अन्य देवियों की तुलना में वह अतिसौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाली देवी हैं।
प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
स्नान के पश्चात सफेद वस्त्र धारण करें।
घर में मौजूद मां की प्रतिमा में मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप स्मरण करें।
मां ब्रह्मचारिणी को पंचामृत से स्नान कराएं।
मां ब्रह्मचारिणी को सफेद या पीले वस्त्र अर्पित करें।
मां ब्रह्मचारिणी को रोली, अक्षत, चंदन (चंदन का तिलक लगाने के लाभ) आदि चढ़ाएं।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में गुड़हल या लाल रंग के फूल का ही प्रयोग करें।
मां ब्रह्मचारिणी का ध्यान करें और उनके मंत्रों का जाप करें।
मां ब्रह्मचारिणी की आरती उतारें और भोग लगाएं।
मंत्र
ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।
दधाना कपाभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।
देवी ब्रह्मचारिणी को स्वाधिष्ठान चक्र का प्रतीक भी माना जाता है
नवरात्र के तीसरे दिन दुर्गाजी के तीसरे रूप चंद्रघंटा देवी के वंदन, पूजन और स्तवन करने का विधान है। इन देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंद्रमा विराजमान है इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला और वाहन सिंह है। इस देवी के दस हाथ माने गए हैं और ये कमल, धनुष, बाण, खड्ग, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा आदि जैसे अस्त्र और शस्त्र से सुसज्जित हैं। इनके कंठ में श्वेत पुष्प की माला और शीर्ष पर रत्नजड़ित मुकुट विराजमान है। माता चंद्रघंटा युद्ध की मुद्रा में विराजमान रहती है और तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं।
नवदुर्गा की तीसरा रूप मां चंद्रघण्टा है, इनका पूजन नवरात्रि के तीसरे दिन किया जाता है। इस दिन सबरे स्नान आदि से निवृत्त हो कर लकड़ी की चौकी पर मां की मूर्ति को स्थापित करें। मां चंद्रघण्टा को धूप, दीप, रोली, चंदन, अक्षत अर्पित करें। मां को लाल रंग के पुष्प और लाल सेब चढ़ाना चाहिए। मां चंद्रघण्टा को दूध या दूध की खीर का भोग लगाना चाहिए। इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करके मां चंद्रघण्टा के मंत्रों का जाप करना चाहिए। पूजन का अंत मां की आरती गा कर किया जाता है। मां के पूजन में घण्टा जरूर बजाएं, ऐसा करने से आपके घर की सभी नकारात्मक और आसुरी शक्तियों का नाश होता है।
मंत्र
ॐ एं ह्रीं क्लीं
पिण्डजप्रवरारूढ़ा ण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
माँ चंद्रघंटा मणिपुर चक्र की देवी मानी जाती है
माँ कूष्मांडा सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदि शक्ति हैं। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था,चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार परिव्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने ‘ईषत’ हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व नहीं था।
शारदीय नवरात्र के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा करते समय पीले रंग के वस्त्र पहनें। पूजा के समय देवी को पीला चंदन ही लगाएं। इसके बाद कुमकुम, मौली, अक्षत चढ़ाएं। पान के पत्ते पर थोड़ा सा केसर लेकर ऊँ बृं बृहस्पते नम: मंत्र का जाप करते हुए देवी को अर्पित करें। अब ॐ कुष्माण्डायै नम: मंत्र की एक माला जाप करें और दुर्गा सप्तशती या सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें। मां कूष्मांडा को पीला रंग अत्यंत प्रिय है। इस दिन पूजा में देवी को पीले वस्त्र, पीली चूड़ियां और पीली मिठाई अर्पित करें। देवी कुष्मांडा को पीला कमल प्रिय है। मान्यता है कि इसे देवी को अर्पित करने से साधक को अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है।
मंत्र
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
कुष्मांडा देवी को अनाहत चक्र की देवी माना जाता है
एक पौराणिक कथा के अनुसार, कहते हैं कि एक तारकासुर नामक राक्षस था। जिसका अंत केवल शिव पुत्र के हाथों की संभव था। तब मां पार्वती ने अपने पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कंद माता का रूप लिया था। स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षण लेने के बाद भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का अंत किया था।
सांसारिक जीवों में नवचेतना का बीज बोने वाली देवी कहलाती हैं मां स्कंदमाता. चैत्र नवरात्रि के पांचवें दिन स्नान के बाद पीले वस्त्र पहनें और फिर देवी को पीला चंदन, पीली चुनरी, पीली चूड़ियां, पीले फूल अर्पित करें. मां स्कंदमाता को केले का भोग अति प्रिय है. खीर में केसर डालकर भी नेवैद्य लगाया जा सकता है. मां स्कंदमाता के मंत्रों का जाप करें और आरती के बाद 5 कन्याओं को केले का प्रसाद बांटें. मान्यता है इससे देवी स्कंदमाता बहुत प्रसन्न होती है और संतान पर आने वाले सभी संकटों का नाश करती है. संतान हर कठिनाईयों को आसानी से पार करने में सक्षम बनता है.
मंत्र
ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
स्कंदमाता विशुद्ध चक्र का प्रतीक हैं।
शास्त्रों के अनुसार माता का स्वरूप स्वर्ण के समान चमकीला है और उनकी चार भुजाएं हैं। प्रत्येक भुजा में माता ने तलवार, कमल, अभय मुद्रा और वर मुद्रा धारण किया है। माता कात्यायनी को लाल रंग सर्वाधिक पसंद है। किंवदंतियों के अनुसार महर्षि कात्यायन की तपस्या के बाद माता कात्यायनी ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था। मां दुर्गा इन्हीं के रूप में महिषासुर का वध कर उसके आतंक से देव और मनुष्यों को भय मुक्त किया था।
मां कात्यायनी को लाल रंग अतिप्रिय है। इस दिन लाल रंग के गुलाब का फूल मां भगवती को अर्पित करना अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से मां भगवती की कृपा होती है। मां कात्यायनी को शहद अतिप्रिय है। ऐसे में पूजा के समय मां कात्यायनी को शहद का भोग लगाना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से भक्त का व्यक्तित्व निखरता है।
मंत्र
ॐ देवी कात्यायन्यै नम:॥
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी
देवी कात्यायनी को आज्ञा चक्र का प्रतीक माना जाता है
नाम से अभिव्यक्त होता है कि मां दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है।
इस देवी के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो।
बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं अर्थात् इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है।
कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं।
ये ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।
सर्वप्रथम पूजा स्थान की अच्छे से साफ-सफाई करने के बाद चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर मां कालरात्रि की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। पूजा के दौरान मां कालिका को रातरानी के फूल चढ़ाएं। भोग के रूप में गुड़ अर्पित करें। इसके बाद कपूर या दीपक से माता की आरती उतारें। इसके बाद मां कालरात्रि के मंत्रों का लाल चंदन की माला से जाप करें।
मंत्र
ॐ कालरात्र्यै नमः
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी। वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
कालरात्रि माता को भानु चक्र की देवी माना जाता है
मां दुर्गा की अष्टम सिद्ध स्वरूप माता महागौरी हैं। इनका रूप अत्यंत सौम्य है और माता भगवती का यह रूप बहुत सरस और मोहक है। माता महागौरी का वर्ण अत्यंत गौर और इनके वस्त्र व आभूषण भी गौर रंग के हैं। माता महागौरी बैल की सवारी करती हैं और इनकी चार भुजाएं हैं। मां महागौरी दाहिने भुजा में अभय मुद्रा और त्रिशूल धारण करती हैं। बाएं भुजा में डमरू और वर मुद्रा धारण करती हैं।
पूजा विधि
देवी दुर्गा की आठवीं शक्ति माता महागौरी को प्रसन्न करने के लिए आपको नवरात्रि के आठवें दिन प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान ध्यान कर लेना चाहिए। संभव हो तो इस दिन श्वेत वस्त्र धारण करें और माता को भी सफेद रंग के कपड़े अर्पित करें। पूजा की शुरुआत आपको ‘या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:’ मंत्र से करनी चाहिए। पूजा के दौरान आपको मोगरे के फूल, या सफेद रंग के फूल माता को अर्पित करने चाहिए। इसके बाद माता को रोली कुमकुम लगाना चाहिए। इसके बाद मिठाई, फल, काले चने माता को भोग के रूप में अर्पित करने चाहिए। तत्पश्चात आप दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हैं। अंत में माता की आरती आपको करनी चाहिए।
मंत्र
ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
महागौरी माता को सोम चक्र का प्रतीक माना जाता है
मां सिद्धिदात्री के पास अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व यह 8 सिद्धियां हैं। मां सिद्धिदात्री महालक्ष्मी के समान कमल पर विराजमान हैं। मां के चार हाथ हैं। मां ने हाथों में शंख, गदा, कमल का फूल और च्रक धारण किया है। मां सिद्धिदात्री को माता सरस्वती का रूप भी मानते हैं।मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार, भगवान शंकर ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी कृपा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वह लोक में अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। सिद्धिदात्री मां के भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष नहीं करती है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे।
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
मां की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं।
मां को सफेद रंग के वस्त्र अर्पित करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां को सफेद रंग पसंद है।
मां को स्नान कराने के बाद सफेद पुष्प अर्पित करें।
मां को रोली कुमकुम लगाएं।
मां को मिष्ठान, पंच मेवा, फल अर्पित करें।
माता सिद्धिदात्री को प्रसाद, नवरस युक्त भोजन, नौ प्रकार के पुष्प और नौ प्रकार के ही फल अर्पित करने चाहिए।
मां सिद्धिदात्री को मौसमी फल, चना, पूड़ी, खीर, नारियल और हलवा अतिप्रिय है। कहते हैं कि मां को इन चीजों का भोग लगाने से वह प्रसन्न होती हैं।
माता सिद्धिदात्री का अधिक से अधिक ध्यान करें।
मां की आरती भी करें।
नवमी के दिन कन्या पूजन का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन कन्या पूजन भी करें।
मंत्र
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः।
माँ सिद्धिदात्री को सहस्रार चक्र की देवी माना जाता है